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३४० - ध्यानकल्पतरू.. विचित्रता उपजाने वाले, इत्यादी अनेक असद्भावका कारण है. ऐसा जाण या कैवल ज्ञानसे प्रत्यक्ष देख, देवता, किन्नर या मनुष्यादी सम्बन्धी गीत श्रवण क रते हुयेभी स्वभावसे किंचित राग द्वेषको प्राप्त नहीं होते हैं. सर्व नृत्य-नाटक हो रहें हैं सो विटंबना मात्र है. जैसी वीटंबना जीवोंकी चतुर्गति परिभ्रमण में हो ती हैं, वैसीही बीटंबना कर्माधीन हो बेचारे करते है. कधी पुरुष, कधी स्त्री, कधी उंच, कधी नीच, ऐसा अनेक विचित्र रूप धारण कर अनेक जनके वृन्दमें या अनेक देवोके वृन्दमें हांस रुदन नृत्य आदी कर बताते है, और भवोंकी विचित्रता को अल दोनो (नतिक
और प्रेक्षक) हर्षानन्द में गर्क होते है, जाण चतुरगतिकी विटम्बना सेही त्रत नहीं हुये. सो अब स्वतः नाच या नृत्य देख ऋती करते है, यह विटम्बना जग
की देख सर्व जगत्का नाटक ज्ञान कर देख हुयेभी राग द्वेषमय नहीं होते है, “सर्व आभरण-भूषण भार (बजन) भूत हैं" पृथवीसे उत्पन्न कंकर पत्थर लोहदिक सामा न्य धातू और पृथवीसेही उत्पन्न हुये रजत ( चांदी) सुवर्णं या हीरा पन्ना रत्नादी पदार्थ उत्पन्न होते हैं. ऐसे दोनो एक से भार भुत होते भी. सरागी जीवों कंकर पत्थर का वजन देने से दुःख मानते हैं. और