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३५२ ध्यानकल्पतरू. और ५ निश्चय में क्रिया रहित आत्माको भी जो व्यः अहार से विर्यान्तराय कर्मके क्षयोपशम से उत्पन्न मन बचन, और कायाके पुद्गल वर्गणाका अवलम्बन करने बाला कर्मोकों ग्रहण करने में कारण भूत आत्माके प्रदे शोका संचलन, सो योग.
यह पांच अश्रव संसारी जीवों के अनादी से प्रणातिमें प्रणम रहेहै, जिस से अनंत संसर प्रणति प्रणमने का कार्य होता हैं, शुक्ल ध्यानी ने पंचही आश्रवों का स्वभाव सेही नाश कर १क्षयिक, सम्यकत्व २ यथा ख्यात चारित्र ३ अप्रमादी, ४ क्षिण, कषायी, और स्थिर स्वभावी हैं, इन पंच गुणोंको स्वभावी प्राप्त करतें हैं.
द्वितीय पत्र “अशुभानु प्रेक्षा"
२ अशुभानु पेक्षा-जीवों का शुभाशुभ होने के दो मार्ग है. १ निश्चय और २ व्यवहार. निश्च सो निजगुण में प्रवृती करने को कहते हैं. और व्यवहार वाह्य प्रवृती को कहते हैं, छद्मस्तों के लिये अव्वल व्यवहार हैं, अर्थात् व्यवहार शुद्ध कार्म कर आत्म सा. धन करते निश्चय की तर्फ द्रष्टी रखते हैं; और सर्वज्ञ निश्चय की प्रव्रती करते हुये भी, व्यवहार को नहीं