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३२२ ध्यानकल्पतरू. शित करने वाली आत्मा! तेरी शक्तीका कोण वरणन कर शक्ते हैं ? तूं अनंत अपार शक्तीवंत है. जो तूं सच्चे; मनसे ध्यानमे तनमय हो कदापी अपना प्राक्रम अज मावे, तो एक क्षिणमात्रमें अधो मध्य उर्ध तीनही लो. कको हला शक्ती है!! यह तो द्रबे गुण कहे, और भा वे गुणतो अनंत अक्षय मोक्ष सुखकी प्राप्तीका करनेवाला शुद्ध ध्यान है!
परम पूज्य श्रीकहानजी ऋषिजी महाराज
की सम्प्रदायके बाल ब्रह्मचारी मुमी - श्री अमोलख ऋषिजी रचित ध्यान कल्पतरू ग्रन्थका शुद्ध ध्यान नामे उपशाखा
समाप्त.