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चतुर्थशाखा-“शुकृध्यान."
सूत्र
“सुक्के झाणे चउविहे चउ प्वडोयारे पन्नते
तंज्जहाण
अर्थांत= सुक्ल ध्यान के चार पाये, चार. लक्ष .ण, चार आलंबन, और चार अनुप्रेक्षा यो१६ भेद भ गवंतने फरमाये हैं, वो जैसे है वैसे कहते हैं.
धर्म ध्यान की योग्यता से, शुद्ध ध्यान ध्याते, मुनी, अधिक गुणोकों प्राप्त होते हैं. अत्यंत शुद्धता को प्राप्त होते हैं; वह धीर, वीर मुनीस्वर शुक्ल ध्यान को ध्याते हैं.
शुक्ल ध्यानीके गुण. शुक्ल ध्यानकी योग्यता जिनको प्राप्त होती है. उनकी आत्मामें स्वभाविकता से सद्गुणोंका उद्भव हो ता है वह गुण 'सागार धर्मामृत' ग्रन्थकी टीकामे इस तन्हे कहा है