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चतुर्थशाखा-शुक्लध्यान. ३२५ कार का सकल्प विकल्प (चलविचल) पणा नहीं रहा, एकांत न्याय मार्गके तर्फ लग गया. सुरांगना और सुरेन्द्रकी ऋद्धि भी उनके चित्तको क्षोभ उपजा नहीं शक्ती है, ध्यान से चला नहीं शक्ती है. तथा इस लोकमे पूजा श्लाघा, और परलोकमें देवादिककी ऋद्धि की वांछा न होवे, मेरु समान प्रणाम की धारा स्थिरी भूत हुइ है. ३ योगातीत-अर्थात मन बचन
और कायाके योग्यका निरंधन किया, मनको आत्म ज्ञानमें रमा बचनविन मतलब न उचारे और काया का हलन चलन विन प्रयोगन नहीं होवे, 'ठाण ठिया एक स्थान स्थिरी भूत करे, ४ कषायातीत-क्रोधादी कषाय की लाय (अग्न) को बुजाके शांत शीतल बन गये हैं. अपमानादी मरणांतक जैसे घोर उपसर्ग होने सेभी कदापि कम्पित होना तो दूर रहा, परन्तु मनमेंभी दुभाव न लावे. ५७ क्रियातीत-अर्थात का____ *१३ तेरे क्रिया-१ मतलबसे कर्म करेसो अर्था दंड क्रिया. २ विना मतलब करे सो अनर्था दंड क्रिया. ३ जीव घात करे सो हिंशा दंड. ४ अचिंत कर्म हो जाय सो अकस्मात दंड. ५ भरमसे घात करे सो द्रष्टी विपरियासीया दंड. ६ झूट बोले सो मोषवती दंड. ७ चोरी करे सो अदत्त दान दंड. ८ अशुभ ध्यान ध्यावे मो अध्यात्मिक ९ अभीमान करे गो पायात मित्रपे द्वेष करे सो मित्र दोषवति. ११ कपट करे सो मायावति