Book Title: Dhyan Kalptaru
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Kundanmal Ghummarmal Seth

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Page 357
________________ चतुर्थशाखा-शुक्लध्यान. ३३१ प्राप्त करते हैं. ऐसा परमोपकार का कर्ता केवल ज्ञान हैं, केवल ज्ञानीही तीसरे पायको प्राप्त होते है.. तृतीय पत्र - "सुक्ष्म क्रिया. " ३ सुक्ष्म क्रिया - अप्रतिपाति यह तेरमें गुणस्था नमें प्रवतमे केवल ज्ञानीयों को होता हैं, सुक्ष-थोडी क्रिया-कर्म की रज रहैं, अर्थात् जैसे भुंजा हुवा अनाज खानेसे पेट तो भरा जाता है. परंतु बाया हुवा उगता नहीं हैं, तैसेही अघातीये कर्म की सत्तासें चलनादी क्रिया कर सक्ते हैं, परंतु वो कर्म भवांकुर उ न्न नहीं कर सक्ते है. आयुष्य है वहांतक है. और उनके योगसे सुक्ष्म इर्या वही क्रिया लगती है, अर्थात् मन बचन कायाके शुभ योगकी प्रवृती होते, अहार, विहार, निहारादी करतें सुक्ष्म जीवोंकी विराधना होने से क्रिया लगे, उसे पहले समय बन्धे, दूसरे समय वेदे .. और तीसरे समय निर्जरे, (दूर करे ) जैसे कांचपे लगी. हुइ रज, हवासे दूर होय; त्यों क्रिया दूर हो जाती है.. और अप्रतिपाति कहीये, आया हुवा ज्ञान पीछा जाता नहीं है; अर्थात्, मति आदी चार ज्ञान तो प्रणामों की वृधीसे बढते हैं, और हीनता से चले भी जाते हैं, परंतु केवल ज्ञान आया हुवा पीछा जाता नहीं है, और

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