Book Title: Dhyan Kalptaru
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Kundanmal Ghummarmal Seth

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Page 358
________________ संपूर्णता है. इस लिये हानी बृधीभी नहीं होती है. चतुर्थ पत्र-“समुछिन्न क्रिया.' ४ समुछिन्न क्रिया-अनिवृती यह चौथा पाया चउदमें (छेले) गुणस्थान में होता है, चउदमें गुणस्था नका नाम अयोगी केवली है, अर्थात्-बो मन, बचन, कायाके योग रहित हो जाते हैं, जिससे 'समुछिन्न नित्या अर्थात-सर्व क्रिया नष्ट हो जाती है. जहां योग और लेश्या नहीं वहां क्रियाका कामही नहीं रहता हैं; वो अक्रिय होते हैं, और अनिवृती' सो शैलेसी ( मेरु पर्वत जैसी स्थिर) अवस्थाको प्राप्त होते है, जिससे वो शुद्ध चित पूणानन्द, परम विशुद्धता-निर्मलता होती है, अघातिक कर्मका नाश हो, शुद्ध चैतन्यता प्रगट हो जाती है, फिर वो उस स्वभावसे कदापि निईतत नही हैं. मोक्ष पधारे उसही स्थितीमें अनंत काल कायम बने रहते हैं, यह शुक्लध्यान का चौथा पाया. द्वितीयप्रतिशाखा-“शुक्लध्यानस्यलक्षण' सूत्र-सुक्कसणं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नंत तंज्जहा. विवेगे, विउसग्गे, अवठे, असमोहे. अर्थ-शुक्लध्यान ध्याताके चार लक्षण (पहचा

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