Book Title: Dhyan Kalptaru
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Kundanmal Ghummarmal Seth

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Page 353
________________ चतुर्थशाखा-शुक्लध्यानः ३२७ प्रथम पत्र-“पृथक्त्व वितर्क" १पृथक्त्व विर्तक ®=जीवाजीव की पर्याय का प्रथकर (अलग२) विचार करे, आर्थात श्रुतज्ञान (शा. स्त्रोक्तरीत) से पहले जीव की पर्याय का विचार करते, अजीव की पर्याय में प्रवेश करे; और फिर अजीव की पयार्य का विचार करते, जीव की प्रायमें प्रवेश करे, नय, निक्षेपे, प्रमाण, स्वभाव, विभाव इत्यादी रीतसे भिन्न २ करके चिंतवन करे-त. था आत्मा द्रवेसे धर्मास्ता का पृथक पणा करे, द्रव्य गुण पायका भी पृथक पणा करे, आत्मा के सा.मान्य और विशेष गुणका पृथक पणा करे, एक पर्याय के भी द्रव्य गुण पर्याय का पृथक पणा चिंतवे, औ र आत्मा के अंसख्य प्ररेशों मे से एक प्रदेश को भी व्यंजन अर्थ योग से भिन्न पणा द्रव्य गुण पर्याय विचारे! योंविविध रूप से एकेक वस्तु का विचार करते उसमें प्रवेश कर, वीतर्क अनेक प्रकार के तर्क वीतर्क * पृथक-विविध प्रकार, वितर्क--श्रुत ज्ञाने विचार. अर्थातव्यंजन संक्रम सो अभिधान, उससे हुवा. २ अर्थ सक्रम अर्थका बोध और वो प्रगम. ३ योग संक्रम मनादी त्रियोगमें रमण येतीन संक्रम इस पायेमें होते है.

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