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उपशाखा-शुद्धध्यान. ३२१ रस अहार हस्त स्पर्य से क्षीर जैसा होजाय, तथा बचन मत्र से निर्बल को पुष्ठ बनादे. ४ महरासवी-कटू अहार स्पर्य से मधूर होजाय, तथा बचन मधुर मद्य (सेहत) जैसे प्रगमे, (सप्पिरासवी)लुक्खा अहार स्पर्य से घ्रतसे संस्कारा जैसा होजाय, तथा बधन से रोग गमाशके, ६ अमइसवी-विष स्पर्य से अम्रत जैसा होजाय तथा बचन से जेहर उ. तार शके.
८ क्षेत्र ऋद्धि' के २ भेद अखीण माणसी अल्प अहार स्पर्य से अखट हो जाय. चक्रवृतीकी शैन्यभी जीम जाय तो खुटे नहीं, २ अखीण महालय स्पर्य मात्रसे भोजन वस्त्र पात्र सर्व अखट होय.
ये सर्व १८+१+११+७+३++६+२=६४ भेद लब्धी-ऋद्धिके हुये.
महातप और शुद्ध-ध्यानके प्रभावे, ऐसी २ लब्धीयों आत्म शक्तीयों, मुनीराजके प्रगट होती है, परंतु वे कदापी इनके फल की इच्छा नहीं करते है, तो फोडना-करना तो कहा रहा! श्लोक-अहो अनन्त वीर्यो अय, मात्मा विश्वप्रकाशकः
त्रैलोक्यं चलायत्वे, ध्यान शक्ति प्रभावतः अर्थ-अहो ! सम्पूर्ण विश्व (जगत्) को प्रका