________________
। ध्यानकल्पतरू. इस लिये जीव है. 'उव ओगम ओ' शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे परिपूर्ण निर्मल दो उपयोग है, वैसाही जीव है; तो भी अशुद्ध नयसे क्षयोपशमिक ज्ञान और दर्शन युक्त हैं. 'अमुति' जीव व्यवहार नयसे, मुर्ती कर्माधी न. होनेसे वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, रूप, मुर्ती दिखता है; तोभी निश्चय नयसे अमूर्ती इंन्द्रियोंके अगोचर शुद्ध स्वभावका धारक है. 'कत्ता' जीव निश्चय नयसें किया रहित निरूपाधी ज्ञायकैक स्वभावका धारक है. तोभी व्यवहार नयसे मन बचन कायाके व्योपारको उत्पन्न करने वाले, कर्मों सहित होनेके सबबसे, शुभा शुभ कर्मोका कर्ता हैं. 'सदेह परिमाणो' जीव नि. श्चयसे स्वभावसे उत्पन्न शुद्ध लोकाकाशके समान
असंख्यात प्रदेशका धारक है. तोभी सरीर नामक मौदय से उत्पन्न संकोच विस्तारके स्वाधीन हो. देह प्रमाणे होता हैं. जैसे दीपक भाजन प्रमाणे प्रकाश
* केवल ज्ञानी आयुष्य कर्म थोडा रहे, और बेदनी आधिक रहे, तब दोनोको बराबर करने अठ समययें समुत्यात होती है. आत्म प्रदेशका १ समय चउदे राजु लोकमें उंचा नीचा का दंड. २ समय कपाट ३ समय मथन ४ समय अंतर पुरे ( उस वक्त सर्व लोकमें आत्मा व्याप जाती है.) ५ स. अंतर सारे ६ मथन सारे ७ कपाट सारे ८ मदंड सारे..