________________
उपशाखा-शुद्धध्यान. ३०९ बन. तन्मय हो लवलीन होजा, जैसे स्वपन अवस्थामें द्रष्ट वस्तुकें ध्यानमें लीन हो, उसही रुप आप बन जाता है. अपनी मूल स्थिती भूल जाता है; वो तो मोह दिशा है. परंतु वैसेही ज्ञान दिशामें लव लीन हो अहंत भगवानके गुणोंमे तन्मय बन, के जिसके प्रशादसे सेरी अनंत आत्म शक्ती प्रगटे और तूही अहंत बने. ..
चतुर्थ पत्र "रुपातीतध्यान'
४ 'रूपातीत ध्यान' रूपसे अतीत-रहित (अ रूपी). ऐसे सिद्ध प्रमात्माका ध्यान-चिंतवन करना सो रूपातीतध्यान. गाथा जारिरस सिद्ध सहावो, तारी सहावो सब जीवाणं तम्हा सिद्धत रुइ, कायव्वा, भव्य जीवेही.
सिद्ध पाहुड. अर्थात-जैसा सिद्ध भगवंतकी आत्माका स्व रूप हैं, वैसाही सब जीवोंकी आत्माका स्वरूप है, इस लिये भव्य जीवोको सिद्ध स्वरूप में रुची करना अर्थात सिद्ध स्वरूपका ध्यान करना. गाथा जं संठाणं तुइहं, भवं चयं तस्स चरिम समयंमी
आसिय पए संघणं, तं संठाण तहिं तस्स. ३