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उपशाखा-शुद्धध्यान. नहीं श्वत, नहीं सुगन्धी, नहीं दुर्गन्धी, नहीं मिरच जैसे तीखे, नहीं कडुवे, नहीं कसयले, नहीं खट्टे, नही मीठे, नहीं कठिण, नहीं नरम (कोमल) नहीं भा+ री (वजनदार) नहीं हलके, नहीं ठन्डे, नहीं उष्ण (ग रम) नहीं स्निगन्ध (चीकणे) नहीं लुरके इत्यादी किसी भी प्रकार के नहीं हैं. अब उनको जन्मनाभी नहीं, मरना भी नहीं, किसीका संग भी नहीं; नहीं है वो स्त्री, नहीं है पुरूष, नहीं है नपुशक, परन्तु स. र्व पदार्थके जाण पिरिज्ञाता = संपूर्ण पणे जाणते हुये,
सदा स्थिरभूत विमाराजनहै, उनको ओपमा दी जाय ऐसा पदार्थ एकही जक्त में नहींहैं, क्योंकि वो तो अ रूपीहैं, और ओपमा देने लायक व बचनसे कहे जावें वो पदार्थ रूपी हैं, इस लिये अरूपी को रूपी की ओषमा छाजती नहीं हैं, और उनकी भी अवस्था किसी प्रकारके विशेषण देने लायक हैही नहीं; इस लिये ही कहा जाता कै की, उनको जान ने के लिये, बताने के लिये, कोइभी शब्द शक्तीवंत नहीं हैं. फक्त व्यक्ती रूपही गुणोचार न कर सक्तहैं. गाथा-जहा सब काम गुणियं, पुरिसो भोग भोयण कोइ
तण्हा छुहा विमुक्को, अच्छेज जहा अभियोतत्त १८