Book Title: Dhyan Kalptaru
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Kundanmal Ghummarmal Seth

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Page 340
________________ - ३१४ ध्यानकल्पतरू. इय सव्व कालातत्ते,आउलं निव्वाण मुवगया सिद्धा सासय मव्वा वाहय, वट्टइ सुही सुहं पत्तो. १९ ऊववाइ सूत्र अर्थात - यथा द्रष्टांत कोइ पुण्यवन्त, श्रीमंत सर्व प्रकार के सुख की समग्री युक्त वो इच्छित -रा गणी यादी श्रवण कर, नाटकादी अवलोकन कर, पु पादी सूंघकर, षड रस भोजन इछित भोगवकर, औ र इछित सर्व सुखों का भोगोपभोग ले कर त्रप्त हो, निश्चिंत्त सुख सेजा मे अनन्द के साथ बेठा हैं, सर्व कामना रहित संतुष्ट हुवाहें, किसी भी तरह की जिसे इच्छा न रही हैं. तैसेही सिद्ध भगवन्त सिद्ध स्थान में सर्व काम भोग से त्रप्त, निरिछित हो; अतुल्य अनोपम, अमिश्र, शाश्वत, अव्याबाध, निरामय, अपा र, सदा सुख से त्रप्त हुये की माफिक, सदा विराज मानहै. उनको कदापी कोइभी काल में, किसी भी प्रकार की, किंचित मात्र इच्छा उत्पन्न होती ही नहीं हैं, ऐसे पर्मानन्द परमसुख में अनंत काल संस्थत र. हते हैं. ऐसे २ अनेक सिद्ध परमात्माके गुण, रटन मनन निध्यासन, एकाग्रतासे लवलीन हो ध्यान करे, उस व क्त अन्य कल्पना को किंचित मात्र अपने हृदय में

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