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ध्यानकल्पतरू.
ण केवल ज्ञान और केवल दर्शनको संपादन कर, निश्चय से मोक्ष सुख पावे. (यह ध्यान आगे कहेंगे उस सुक्लध्यान के पेटे में हैं.)
ऐसे शुद्ध ध्यानके प्रभावसे ध्याता पुरुषकी आत्मा निर्मल होते अष्टऋद्धी आठ प्रकारकी आत्म शक्ती प्रगट होती है सो
- १ "ज्ञान ऋद्धि” के १८ भेद-१ केवल ज्ञान, २ मय पर्यव ज्ञान, ३ अवधी ज्ञान, ४ चउदे पूर्वी, '५ दश पूर्वी, ६७ अष्टांग निमित, ७ 'बीजपुन्ही' शुद्ध
क्षेत्रमें योग्य वृष्ठीसे धान्यकी बृधी होय, त्यों सहजा . नंदी आत्ममे ज्ञानकी वृधी होय. ८ 'कोष्टक बुद्धि'= ज्यो कोठारमें वस्तु विणशे नहीं, त्यो ज्ञानविणशे नहीं. तथा राजाका भंडारी भंडारमेसे वक्तोवक्त यथा योग्य
* निमित के ८ अंग-१ अंतरिक्ष अकाशमें चंद्र सूर्य ग्रह नक्षत्र बादल आदी देखके, २ भूम-पृथ्वी कंपनसे (आदीसे पृथ्वी गत निध्यान जाने), ३ अंग-मनुष्यादीके अंग फरकनेसे, ४ स्वर दुर्गादी पक्षीके शब्दसे, ५ लक्षणमनुष्य पशु के लक्षण देख, ६ व्यंजन तिल मरतादी व्यंजन देख, ७ उत्पात रक्त दिशादी देख,
८ खपन-स्वपनसे, इन आठ कामोंसे होते हुये शुभाशुभ हो तब - ... को जाणे परंतु प्रकाशे, नहीं.