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उपशाखा -शुद्ध ध्यान.
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यों जीव और कर्मकी भिन्नता जाणनेका, तथा उन्हे भिन्न २ करनेका उपाय संक्षेपमें कहा, औरभी ग्रंथकार कहते हैं.
* पिंडस्थ ध्यानमें संस्थित होनेसे आत्माकी ज्ञान जोतीका प्रकाशित करनेका सरल उपाय एक ग्रन्थकार ऐसा कहते है की - शुभध्यानमें करें मुजव, द्रव्यादी शुभ सामुग्री युक्त ध्यानस्त हो, अंतःकरण में विचारे बाहिर श्वास निकल ते की मै स्वस्थान छो ड बाहिर आया, और पुनः अन्दर श्वास जाती वक्त विचारे की, मै अन्दर चला. यों विचारही विचारसे सिरस्थान से कंठस्थान और कंठस्थानसे नाभीकमलस्थान पे जा विराजमान होवे. और वहां स्थिर हो अन्दरको द्रष्टीको खुली कर देखने ऐसा भाषा होगा की मै नाभी कमल पेही संस्थित हूं, यो जब अपनी आ. त्माका सुक्ष्म स्वरूपका भान होवे. तब उस सुक्ष्म स्वरूपकी द्रष्टी खुल्ली कर नाभीके आजु बाजु चारही तर्फ अवलोकन करे, यों धैर्य और द्रढ निश्चयके साथ अवलोकन करनेसे जो अन्धकार देखाय तो, उसी वक्त द्रढ निश्चयसे कल्पना करे, की इस अन्धकारका शिघ्र नाश होवो, और अनंत प्रकाशी सूर्य मंडलका मेरे हृदय - में प्रकाश होवो. यों कहता हुवा सुक्षम रूपसेही आकाशकी तर्फ (उंचा) अवलोकन करे, के उसी वक्त सूर्य जैसा प्रकाश अंतःकरण में दिखने लगेगा, यों हमेशा अभ्यास रखनेसे अंतर आत्मा की ज्ञान ज्योती में दिनो दिन विशुद्धता की अधिकता होती है. और अंतरिक गुप्त वस्तुओं जाणनेमें आने लगती है और अनेक गुप्त शक्तीयों प्रगट होती है.
पिण्डस्थ ध्यानमें १ तत्व के विचार करनेसे भी ज्ञान ज्योती प्रकाश होता है, ऐसा भी एक ग्रन्थकार लिखते हैं. सो ध्यानस्त