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ध्यानकल्पतरू.
तृतीय पत्र “रूपस्थध्यान"
३ " रुपस्थध्यान" - रुपी परत्माके गुणमें स्थिर होना' सो रूपस्थध्यान, अर्हत पाहुडमें कहा हैजे जाणइ अरिहंते, दव्व गुण पज्जवेहिय; ते जाणइ नियऽप्पा, मोह खलु जाइय लयं.
अर्थात् जो अर्हत भगवंतका स्वरूप, द्रव्य, गुण, पर्याय, करके जाणेगा, वोही आत्माके स्वरूप को जाणेगा. और जो आत्माको पहचानेंगा वोही मोह कर्मका नाश करेगा.
अर्हत, अरिहंत, और अरूहंत यों ३ शब्द हैं. १ देविन्द्र नरेंद्रादिक के पूज्य, व अतिशयादी ऋद्धी युक्त सो अर्हत. २ कर्म व राग द्वेषरूप शत्रुके नाश करे उन्हे, अरिहंत कहते है, और ३ जन्मांकुर, व रोगादी दुःख के अंकुरके नाश करने वालेको अरुहंत कहते है :
श्री अर्हत भगवंत, अनंत-ज्ञान-दर्शनचारित्र, और अनंत तप, यह अनंत चतुष्टय कर युक्त है, समवसरण के मध्य में, अशोक वृक्षके नीचे, मणी रत्नो जडित सिंहासणके उपर, चार अंगुल अधर, छत्र, चमर, प्रभामंडल की विभूती युक्त द्वादश (१२) जात