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ध्यानकल्पतरू.
निर्मळ अनुभव कर की यह आत्मा समस्त लोकके यथार्थ स्वरूप को प्रगट करनें वाला अद्वितिय सूर्य है. विश्वमें सामान्य अग्नीसे दीपकका प्रकाश अधिक गिनते है, दीपकसे मशालका, मशालसे ग्यासका और ग्यास से बिजलीका प्रकाश अधिक पडता है. इन कृतिम प्रकाशसे स्वभाविक चन्द्रमा का प्रकाश अधिक है, और चन्द्रके प्रकाशसे सूर्यका प्रकाश अधिक लगता है. परंतु आत्म ज्ञानके प्रकाश तुल्यतो कोटी सूर्य भी प्रकाश नहीं कर सके हैं, अन्य दीपका दिक के प्रकाशको वायू वगैरे घातिक वस्तुका और चंद्र सूर्य को राहू बद्दल वगैरे के अच्छादन होनेसे तथा अस्त होनेसे प्रकाशका नाश होता है. परंतु आत्म ज्योतीको मेरु पर्वतको हलाने वाला वायूभी नहीं बुज सक्ता है और न बद्दल या राहू, उसे अच्छादन (ढक्कन) देसके हैं. आत्म जोती यथा रूप प्रकाशित होनेसे तीन लोकके सुक्ष्म बादर चराचर सर्व पदार्थ एक वक्त एक ही समय मात्रमें भाष होने लगते हैं, तब आत्मा परमानंदी बनता है. इत्यादी विचार में प्रवृते सो अंतर आत्मावाला जाणना. अंतर आत्माको प्राप्त हुवेही प रमात्मा होते हैं.