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उपशाखा-शुद्धध्यान. २८३ छोडेंगे, वे गर्भसे छूटेंगे, जो गर्भसे छूटेंगे, वे जन्मसे छूटेंगे, जो जन्मसे छूटेंगे, वे मरणसे छूटेंगे, जो मरण से छूटेंगे वे नर्क से छूटेंगे, जो नकसे छूटेंगै, वे तिर्यचसे छूटेंगे, जो तिर्यंचसे छूटेंगे, वो सर्व दुःखसे छुट परम सुखी होवेंगे. ___४८ आत्म ज्ञान विन. शास्त्र ज्ञान निकम्मा है.
४९ इन्द्रियों के सुखका त्यान कर, आत्म ज्ञान प्राप्त करते ऐसा नहीं जानना की, इन्द्रियोंके सुख छूटनेसे दुःखी बन जाता है, क्योंकि आत्म ज्ञानकी सिद्धी होते अमृत मयही संपूर्ण बन जाता है. और उन अमृतपान से जालम जन्म भरणका दुःख दूर हो जाता है. जिससे परम सुखी बन जाता है..
५० हे आत्मन् आत्माके साथ निश्चय कर, मै अतिन्द्रिय हूं, अर्थात मेरे इन्द्रि नहीं हैं, तथा मै इन्द्रियोंके गोचर आवू ऐसा नहीं हूं. तथा इन्द्रियोका शब्दादी विषय है. सो आत्मामें नहीं है. इससे अति न्द्रिय अर्थात् इंन्द्रियातति हूं. और अनिर्देश हूं. अर्था त् बचन द्वारा मेरा वर्णन नहीं हो सक्का, इस लिये बचनातीत हूं. ऐसही मै अमुर्ती हूं. चैतन्य हूं. आनंदमय हूं. इत्यादी विचारसे.निज वरूपमें निश्चल होवे. ___ . ५१ हे आत्मन् , आत्माके साथ ऐसा विशुद्ध