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२८२ ध्यावकल्पतरू.
३९लोकका स्वरूप जाण,लोक सज्ञासे दूर रहना.
४० परमार्थ दर्शी, मोक्ष मार्ग शिवाय, अन्य स्थानमें रती (सुख) नहीं मानते है, वोही मोक्ष पाते हैं, . ४१ केवली भगवानको, न बन्ध है नमाक्ष में
४२ परमार्थी दर्शीको, कुछभी जोखम नहीं है.
४३ अज्ञानी सदा निद्रिस्थ है, परमार्थी सदा जाग्रत हैं.
४४ जो शब्द, रूप, गंध, रस, स्पीकी सुन्द रता असुन्दरतामें सम प्रणाम रखते है. वो ज्ञान औ र ब्रह्म (निर्विकल्प सुख) को जाण सक्ते है, ओर वोही लोकालोक को जाणते है.
. ४५ कर्मको तोडने सेही, पवित्र आत्माके द. र्शन होते है..
४६ जो अपनी तर्फ देखता हैं, वोही सर्व तर्फ देखता है.
४७ जो क्रोधको छोडेंगे, वो मानको छोडेंगे, जो मानको छोडेंगे वो मायाको छोडेंगे, जो मायाको छोडेंगे, वे लोभको छोडेगे, जो लोभको छोडेंगे, वे रागको छोडेंगे, जो रागको छोडेंगे वे देषको छोडेंगे जो द्वेषको छोडेंगे, वे मोहको छोडेंगे, जो मोहको
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