________________
उपशाखा-शुद्धध्यान. २९१ भ होए और ज्ञान, दर्शन, चारित्रकी शुद्धी होनेसे मोक्ष की प्राप्ती होती हैं; कदास पुण्य की बृद्धी हो जाय तो १२ देवलोक ९ ग्रेयवेक ५ अनुत्तर विमान इसमे महारिद्धिक देव होए. . मन्त्र-नमोस्थुणं, अरिहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं, तित्थयराणं, सयं सं बुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससि हाणं पुरिसवर पुंडरियाणं, पुरिसवर गंध हत्थीणं, लोगुत्त माणं, लोग माहाणं, लोग हियाणं, लोग पइवाणं, लोगपज्जोयगराणं, अभयदयाणं, चख्खूदयाणं, मग्गदयाणं,सरणद याणं, जीवदयाणं, वोही दयाणं, धम्म दयाणं, धम्म देसियाणं, धम्म नायगाणं, धम्म सारहीणं, धम्म वर चाउरंत च कवटीणं, दीवो ताणं सरण गइ पइठा. अप्पडी हय वरनाण दंसण धराणं, वियदृ छ उमाणं, जिणाणं जावयाणं,तिनाणं तार याणं, बुध्दाणं, बोहियाणं, मुत्ताणं, मोयगाणं, सव्वन्नुणं, सव्वदरिसिणं, सिव-मयल-मरुय-मणंत-मख्खय म-बावाह, मपुणराविति. सिध्दिगइ नाम द्वेयं ठाणं संपताणं नमो जिणाणं, जिय भयाणं. (यह थय थुइ मंगलं)
यह नवकार चउवीस्तव (लोरगस्स) और नमो त्थुणं यह तीन स्मरण तो यहां बताये; और इन सिवाय जित्ने जिन भाषित सुत्रों की सज्झाय (मूल पाठका पढना) तथा और भी श्रीजिनस्तव. तथा मुनीस्तव.