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ध्यानकल्पतरू.
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'अठ (८) अक्षरी व पंचाक्षरी (५) मन्त्र
अरिहं त सिद्ध सा हू॥अ, सि, आ, उ, सा,
चार, दो, और एकाक्षरी मन्त्र. सिद्ध साहू, ॥ सिद्ध ॥ ॥
इसमें भारत और सिद्धदो मूल मंत्र के पद कायम रख, पीछे के तीन पद एक साहू शब्द में लिये हैं क्यों कि आचार्य. 'पावाय, और साधू यह तीन साधू ही होते हैं. '
इसमें- 'असे अरिहन्त, 'सि' से सिद्ध. 'आ'से आचार्य 'उ, से उपाजाय. और 'सा, से साहू. योएकेक अक्षरका जाप ___इसमें 'अरिहंत' और 'सिद्ध' इन दोनो को सिद्ध पदमें
लियें. क्यों कि अरहन्त भी आगे सिद्ध होने वाले हैं. उन्ह सिद्ध - कानेमें कुछ हरकत नहीं, और आचार्यादि तीन पद साधु पदमें
समाये सो तो पीछे कह दिया है.
_ 'सिद्ध' पद छोड बाकीके चारही पदकी मुख्य इच्छा सिद्ध पद माप्त करनेकी हैं. इस हेतूसे पांचही पदको एक सिद्ध कहने में कुछ हरकत नहीं है. ___ गाथा-'अरिहंता, असरीरा, आयरिया, उवज्झाय, मु. णिणो पंचख्वर निष्पन्नो कारो पंच पर मिठि" अर्थ-अरिहत की आदीमें 'अ' है. असरीर (सिद्ध) की आदीमें भी 'अ' है. और आचार्य के आदीमें भी 'आ' दीर्घ है. उपाज्झाय की आदीमें 'उ' हैं और मुनी (साधु) की आदीमें 'म' है, यह पांच अक्षर अ-अ-आ-उ-म्. व्याकर्ण सिद्ध. हेमचन्द्रचााये कृत शाकटायन के मुत्रसे तीनो दीर्घ 'अ' मिल एक दीर्घ 'आ' बना; तब 'आउम' ऐसा हुवा. 'आ' कार और 'उ' कार मिलनेसे 'ओ' कार होता है. और मकार विन्दूरु होनेसे ओं (*) कार सिद्ध हुवा.