SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ ध्यामकल्पतरू. प्रथम प्रतिशाखा-"आत्मा" सूत्र “जे एगं जाणइ से सव्वं जाणेइ; जे सव्वं Nameer जाणेइ, से एगं जाणइ. आचारांग अ ३ सूत्र २०९ अर्थ-जो एकको जाणेगा, वो सबको जाणेगा और जो सबको जाणेगा वोही एकको जाणेगा! ® वो एक पदार्थ कौनसा है? और कैसा है ? की जिसको जाणने से सर्वज्ञता प्राप्त होवे! उसका स्वरूप मां दर्शाते है. वो "आत्मा" है. आत्माके ३ भेद किये हैं. १ बाहिर आत्मा, २ अंतर आत्मा, और ३ परमात्मा. प्रथम पत्र-“बाहिर आत्मा" . १ बाहिर आत्मा जो यह प्रतक्ष हाडका पिं. जर रक्त मांसादी धातुओंसे भरा हुवा, और रंगीबेरंगी चमडी करके ढका हुवा. ममुष्य या तिथंच (पशुवों) ___ *श्लोक-एको भावः सर्वथा येन द्रष्टाः, सर्वे भावाः सर्वथा तेन सष्ठः सर्व भावाः सर्वथा येन द्ष्ठा, एको भाव सर्वथा तेन द्वष्ठाः ___ अ-जिनने एक पदार्थ को प्रति पूर्ण रुपसे देखा, उनने सर्व पदार्थ प्रति पूर्ण रुपसे देखा और जिसने सर्व पदार्थ पूर्ण से देखा. ज़िनने एक पदार्थ पूर्णस देखा. हुहा-निज रूपे निज वस्तु है. पर हपे परवस्त. जिसने जाणी पैंच यह डसने जाणा समस्त.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy