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________________ उपशाखा - शुभध्यान. २७१ क्त अभ्यास रखनेसे मन किसी कालमें इन्द्रियों के वि षय से वृत्ती कर सकेगा. और फिर ध्यानमें मनको स्थिर करने एकाग्र ता का अभ्यास करना एकाएक मन एकाग्रहोना मुशकिलहैं परन्तु अभ्यास से वोभी हो सक्त हैं; जो जो काम अपने नित्य नियमिक हैं अवलतो उन्ही में एकाग्रता करना चाहीय प्रतिक्रमण करते होय तो उस प्रतिक्रमणके शब्दार्थादी मेही मनको गडा देना उस विचारको छोड अन्यतर्फ नहीं जाने देना एसेही सझ्या य-स्वध्याय करती वक्त स्वध्याय में व्याख्यान देती दक्त व्याख्यानमें गौचरी व आहार करती वक्त अहार. में इत्यादी सर्व दिवस रात्री सम्बधी कार्यमें सदा स. र्वकाल क्षिणंत्र रहित, मनकी एकाग्रता का अभ्यास रखना. यों कित्नेक कालतक करते २ वो सहजही एक वस्तुपे टिकने लग जाता है, फिर हरेक इष्ट पदार्थपे मनकी एकाग्रता हो सक्ती है. यों अभ्यास युक्त वैरा ग्य मनको अडोल ध्यानी बनाता है. " अब वो एकाग्रता तथा ध्यान किस वस्तुका करना सो कहता हूं.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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