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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १०५ भोग रोगकाही कारण हैं. फिर इसमें सुख कैसे गाने? ५ चित मुनीने ब्रम्हदत्त चक्रवृतसे कहा है-“कब्ज आभरण भारा, सव्व काम दुहा वहा" अर्थात सर्व भूषण (गहणे) भार भूत हैं, और सर्व भोग दुःख दा ता हैं, सो सञ्चहीं हैं. जैसे सुवर्ण धातू हैं वैसा लोहा भी धातू हैं. राजाकी तर्फसे सुवर्णकी बेडीकी बक्षील हुइ तो खुश होवे, हमें पांवमें पेहरने सोनामिला. औ र लोहेकी बेडीकी बक्षीस होनेसें रुदन करते हैं. इस विचारसे जाना जाता है, की भूषणमें सुख दुःख नहीं, माननेमेंही है! ऐसेही सर्व काम भोग दुःखदाता है, उनका नामही विषय भोग है; अर्थात जेहर खाना परन्तु; जैसे विष (जेहर) और विशेष 'य' प्रत्यय हैतो यह जेहरसेभी अधिक घाती है. भगवंतने फरमाया है कि “कामभोगाणुरयणं अनंत संसार” बढणं, अर्थात्काम भोगमें रक्त रहनेसे, अनंत संसार बढता है. म. तलवकी-विषत्तो एकही भवमें मारता है; और विषय भोग अनंत भवतक मारतें है, बडे २ विद्वानोंकों और महा ऋषियोंको बावला बनादेता है. ऐसा दुरुधर जेहर है. विषय सुखकी इच्छा कर, भोगवते है, परन्तु क्या २ हानी होती है सो देखो, शक्ती, बुद्धी, तेज; स्तव.इनको नष्ट कर. अत्यंत लब्धतासे. सुजाक आदी..