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ध्यानकल्पतरू.
किये थे. इस लिये लोभके मिठे बचनसे कोइ ठगा ये नहीं, और आगे चलने लगे. तब लोभचन्द्र असुरत्र हो सपरिवार सामे हुया, अरे दुष्टो ! मेरें भाइयोंको मार कहां जाते हो, अब मै तुमें छोडने वाला नहीं !! यों कहे सर्व शैन्य युक्त चैतन्यकी शैन्य पर. इच्छा त्रष्णा मुच्छी,कांक्षा गृधता आशा इत्यादी बाणोंकी वृष्टी कर ने लगे, की उसही वक्त चैतन्यने क्षायिक बाणोका प्रहार कर लोभका सपरिवार नाश कर. बे फिकर हो क्षिण कषाय फिल्में भराके परमानंद पाये.
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लोभचंद्रका सपरिवार नाश कर क्षिण कषाय किल्ले चैतन्यने निवास किया है. ऐसी मोह कों खबर होतेही सतंगे ढिले पडग़ये. जीतनेकी आशातो दूर रही, परंतु इज्जत और जान बचना मुशीबत हो गया. तो भी मानके मरोडे आप खुद चैतन्यका प्राजय क रने खडे हुये सब ज्ञानावरणं आदी सात महा मंडलिक राजा, अपने असंख्य दल बलले साथ हुये. सबसाथ चैतन्यकी तर्फ चले.
यह चैतन्यको खबर होतेही क्षायिक सम्यक्त्व क्षयविक यथाख्यात चारित्र, यह महा पराक्रमी रा जाओ के साथ, करण सत्य, भाव सत्य, योग सत्य, व रक्त से सज हो वितरागी. अकषायी, शस्त्र ले, संपूर्ण
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