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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. २४९ 'संसरति इति संसारः" जिसमें परिभ्रमण करना पडे, सो संसार, चार तरह का है. उन्हे चार गति कहते है गतागत (आवा गमन) करे सो गति चार.
१ नर्क गति न नहीं+अर्क-सूर्य. अर्थात् अन्ध कारसे भरी हुइ अन्धकार भय सो तम+ गति या नर्क गतिके ७ स्थान अधो (नीचे) लोकमें एकेक के नीचे है, (१)® रत्न प्रभा श्याम वर्णके रत्नमय भयंकर सर्व स्थान. २ शर्कर प्रभा-तरवारसेभी अति तिक्षण सर्व स्थान हैं. (३) 'बालू प्रभा=भाड भूजके भाडकी बालू (रेती) से भी अत्यंत उष्ण र्सव स्थान (४) पंक प्रभा रक्त, मांस, पीरू के कीचड मय सर्व स्थान (५) धुस्म प्रभा, राइ मिरची के धूम(धूवे) से भी अधिक तिक्षण धुम्रमय सर्व स्थान (६) तम प्रभा भाद्रव की घटा छाइ अम्मावस्या की रात्री से भी अत्यंत अन्धकार मय सर्व स्थान (७) तम तमा प्रभा; घोरानघोर अन्धारे मय सर्व स्थान यो सातही नर्क के गुण निष्पन्न नाम (गोत्र) हैं इन ७ नर्क में ४२ आंतरे (खाली जगा) ४९ पांथडे नेरी ये रहने की जगा, ८४
+ बहुत शास्त्रमें नर्कका तम गति भी नाम हैं. ____* गम्भा, वंशा, सीला, अंजना, रिट्टा, मग्धा, माघवाइ यह ७ मर्क के नाम.