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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. किया. नर्क निगाद दुःख अपार है; एसा यह संसार दुःख से भराहै. वो सर्व दुःख अपने जीवने अं. नंत वक्त सहन किये हैं गाथा धीधी धी संसारे, देव मरिउण तिरिय होइ; assems मरिउणं राय राया,परि पश्चइ निरिय जालाए
पराग्य शतक जैन. अर्थात्-किसी को एक वक्त किसी को दो वक्त धिक्कार दी जाती हैं. परंतु इस संसार को तीन वक्त धिक्कार हैं. क्यों की देवता जैसे महा ऋद्वी, म, हा सौख्य के, भुक्ता मरके; पृथवी, पाणी, विनाशपति, यादी तिर्यंच योनी में उत्पन्न होते है. और रा. जा ओं के राजा चकृवृती महाराजा मरके. नर्क में चले जाते हैं.
जरा अश्चर्य तो देखीये, जो चक्रवृती मरके उ. नका जीव नर्कमें गया हैं. और उनका सरीर ह्यां पडा हैं. उसका संस्कार (स्मशाण मे लेजाणे की) क्रिया अर्चना, श्रृंगार वगैरे करते है. और नर्क में उनके जी व यम देव ताड मार करते हैं. देखीये क्या सरीर के हाल! और क्या जीव के हाल!!
महान पुन्योदय से मनुष्य जन्मदी सामग्री का दुर्लभ लाभ को तूं प्राप्त हो. भव भ्रमण से छू: