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२५२ ध्यानकल्पतरू. अनंत उष्ण लक्षमण लोहेका गोला गलके पाणी हो जाय ऐसी गर्मी उष्ण योनी स्थानमें हैं. ५ अनंत दहा वर. ६ अनंत रोग सब रोगोसे नेरीये का सरीर व्याप्त है. ७ अनंत खाज (खुजली). ८ अनंत विशधार. ९ अनंत शोक (चिंता) १० अनंत भय. सदा भयभीत रहे. यह १० प्रकारकी वेदना स्वभावसेही है.
ऐसे दुःख मय नर्क स्थानमें, अपना जीव अनंत वक्त उपजके दुःख भोगव आया है.
२ "तिथंच गति” तिरछे बहुत बडनेसे तिर्यंच (पशु) कहे जाते है. ४८ भेद पृथवी काय, आप काय तेउ काय, वायू काय, इन एकेकके सुक्ष्म का प्रजाला, अप्रजाप्ता, और वादरका प्रजाप्ता, अप्रजाता, यो ४४४१६ हुयें. विनाश पतिके सुक्षम साधारण प्र. त्येक इन तीन के प्रजाप्ता, अप्रजाप्ता, दो भेद करने से. ३४२६ हुये. बेंद्री, तेंद्री, चौरिंद्री इन तीनके प्रजाता अप्रजाप्ता यो ३४२-६ भेद हुये. जलचर',
2 पंचमीसे ७ मी तक शीत ज्योनी है. 3 द्रष्टी न आवे. 4 जिस जगे जित्नी प्रजा हे, उत्नी पूरी बांधे सो प्रजाप्ता. 5 अधुरी बांधे सो, अप्रजाप्ता- 6 द्रष्टी आवसो 7 एक सरीरमे अनंत जीव वाले, 8 एक सर रमें एक जीवः 9 पाणी में रहे मच्छादिक, .