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तृतीयशाखा-धर्मध्यान २५१ वैसेही फल देते है. जैसे मांस भक्षीको उसीका मांस तोडके खिलाते है. मदिरा पानीको तरु आ गर्म कर पि लाते हैं. पर स्त्री भोगी को लोहकी उष्ण पुतली से संगम कराते है. हिंशक जैशी तरह हिंशा करे, वैसी. ही तरह उसे मारते है. इत्यादी अनेक कष्ट दुःख नैरीये को देते है. वो बेचारे प्राधीन हो अक्रांद करते सहते है.
२ आपसकी वेदना-तीसरी नर्कके आगे, यम (परमाधामी) नहीं जा शक्ते है. वो नेरीये अनेक वि. क्राल भयंकर खराब जंगली रूप बनाके, आपस में ल डते है. मरते है, हाय त्राहा करते है, ज्यों नवा कु. त्ता आनेसे दूसरे कुत्ते उस पे टूट पडते है वैसा.
३ क्षेत्र वेदना=१० प्रकारकी हैं. १ अनंत क्षुद्या-नर्कके एक जीवको सर्व भक्ष पदार्थ खिला देवे तो भी बृप्ती नहीं आय, और ताचे उम्मर खाने एक दाणा नहीं मिले. २अनंत त्रषा-सर्व जगतका पाणी पीनेसे प्यास नहीं मिटे, और पीने एक बुंदभी नहीं मिले. ३ अनंत शीत' लक्षमनका लोहेका गोला विखर जाय ऐसी ठन्ड शीत ज्योनी स्थानमें हैं. ४
1 पहलेको ४ नर्क उग ज्योनी है