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तृतीयशाखा-धर्मध्यान करने वाले, कसाइ होके बेचारे गरीब निरपात्री जी वोंकी घात कर, महा जब्बर पाप असजते हैं, सिपा इयो हो के अपराधी और निरपराधी को विनाकार णभी मारते हैं. किल्लेक राजादिक महो भारत समय म करते हैं, कित्येक स्वकुटुंब का संहारही कर डाल ते हैं. तो बेचारे एकेंद्रियादिकका तो कहनाही क्या? शस्त्र अनर्थकाही कारण है. शस्त्र हाथमें आयाकी प्रणाम हिंसामय हुये. मसी लिखाइ के कर्म कर उपजीविका चलाने वाले वणिकादिक कसाइ, कूजडे, कलाल, दाणेका, लोहेका, धातूका वगैरे अयोग्य वैपार कर गजा उपरांत बजन उठाये, गामडे में भटकते हैं गुलामी करतेहैं, वगैरे महा कष्ट सहतेहै. कस्सी कृषी (खेती) के कर्म में अनेक एकेंद्री से पचेंद्री तक जी. वकी घात करते हैं शीत ताप क्षुद्या तृषादी महा कष्ट सहते हैं. महा मेहनत से तीनही रुतू वितिकृत क रते हैं, अब्बी वृत मान कालकी स्थितीका ख्याल करते मालम होता हे की, द्रव्य (धन) है तो बहुत स्थान कुटंबकी अंतराय रहती है, कुटंब है तो दरिद्रता रहती है. धन कुटंब दोनो है तो संप नहीं. सरीर रोगीला, सदा क्लेश, लेने देनेका इज्जत का, वगैरे अनेक दुःख भु क्त रहे हैं. कित्नेक बेचारे गरीब है, उन को अपने पेट