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तृतीयशाखा- धर्मध्यान.
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कर सके सो मनुष्य के ३०३ भेद, अस्सी', मस्ती', कस्सी, यह तीन कर्म कर उपजीविका करे सो कर्म भूमी मनुष्यकी उत्पति के १५ क्षेत्र, १ भर्त, १ ऐरावत, १ महाविदेह. यह तीन क्षेत्र जंबुद्विप में और यही दो दो होनेसे ६ क्षेत्र घातकी खंडमें और यों ही ६ पुष्करार्ध द्विपमें यों ३+६+६=१५. वरोक्त तीनही प्रकारके कर्म विना दश प्रकारके कल्पवृक्ष से उपजीवका होवे. सो अकर्म भूमी मनुष्यके ३० क्षेत्र १ हेम वय २ अरण वय, ३ हरीवास, ४ रमक वास, ५ देव कुरू. ६ उत्तर कुरू, यह ६ क्षेत्र, जंबुद्विप में, येही दो दो क्षेत्र होनेसे १२ क्षेत्र घातकी खंडमें, और येही १२ क्षेत्र पुष्करार्ध द्विपमें यो ६+१२+१२ - ३०. जंबुद्विप में के चूली हेमवंत और शिखरी प्रवत मेसे आठ दाढों (खुणे) लवण समुद्रमें गइ है. उन्ह
1 हथी यार (शस्त्र) से 2 लिखने का 3 कृषाण (खेती) * १ मतंगा वृक्ष - १ मधुर रस दे २, भिंगा वृक्ष = वरतन दे. ३ तुडी यंगा वृक्ष = बाजिंत्र सुणावें ४ दिव वृक्ष = दिवा जैसा प्रकाश करें. ५ जोइ वृक्ष = सूर्य जैसे प्रकाश करे. ६ चितगा वृक्ष = विचित्र रंग के पुष्प हारदे. ७ चित रसा - इछित भोजन दे. ८ मन वेगा वृक्ष = रत्न जडित भूषण दे. ९ हिं गारा. रहने अच्छा मकान दे. १० अनि याणा वृक्ष= श्रेष्ट वस्त्र दे. ३० अकर्म भोमी और ५६ अंतर द्विप में रहने वाले मनुष्यो की इन १० कल्प वृक्ष से इच्छा पुरी हो ती हैं.