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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. २५३ थलचर", खेंचर", उरपर", भुजपर", यह पांच सन्नी' और पांच असन्नी". इन १० के प्रजाता अ.. प्रजाता, यों १०४२=२० यह सब मिल ४८ भेद तियंच के हुये. .
यह बेचारे कर्मा धीन हो परवस में पडे हैं. मट्टी को खोदते हैं. फोडते हैं. गोबरादिक मिला के निर्जीव करते हैं. पाणी को गर्म करते हैं. न्हावण, धो वण वगैरे गृह कार्यमें ढोलते हैं. क्षरादी मिलाके निजीव करते हैं. अमी को प्रजालते हैं. बुजाते हैं. पाणी मही यादी से मारते हैं. वायू पङ्खा, झाडू, खांडन. झहक, फटक, उधाडे मुख बोलना, वगैरेसे मारते है, विनशपति को छेदन, भेदन, पचन, पीलन, गालन अली मशाला वगैरे से निर्जीव करते है. बेंद्री, तेंद्री, चौरीद्री, मट्टीके पानीके हरी-लीलोत्रीके इंधनके, अना जके. वस्त्र पात्र आदीके आश्रय रहे, गमनागमन करते, आरंभ सम् भारंभ करते. धुम्रादिक प्रयोग से शीत, उश्न. वृष्टी, सें आदी अनेक तरह उपजते भी है. और मरते भी है. जलचर पाणी खुटनेसें. नवा पाणी आणे से या धीवरा दिक मारतें हैं. स्थल चर-या वनचर
10 पृथवी चले, गायादिक. 11 आकाशमेंउडे पक्षीयादि. 12 पेट रगड चले सादिक. 13. भुजसे चले उदादिक.