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वृतीयशाखा-धर्मध्यान. १५५ द्री पणा पावे.
८प्र-रस इन्द्रिकी निरोगता कायसे पावे? उअभक्ष त्यागे, रस अधी नहो. सहौध कर धर्म फेलावे सदा गुणोंकाही उच्चारण करे, सर्वको सुखदाता बोले रसना हीनकी सहायता करे, तो रसनाका निरोगी, मधूर अलापी होवे. ___९ प्र-हस्तकी हीनता कायसे पावे? उ-अन्यके हस्त छेदन करे, खोटे तोले मापे वापरे, खोटे लेख लिखे, कूशास्त्र बणावे. चोरी करे, लूले ( हस्त रहित
की) हांसी करे, दूसरेका छेदन, भेदन, मारताड करे पक्षीयोंकी पांख काटे. तो लूला (हाथ रहित) होवे.
१० प्र-हस्तकी प्रबलता कायसें होय? उ-दान दे वे, खोटा लेन देन नहीं करे, खोटे लेख नहीं लिखे, अच्छे धर्मिबृधीके लेख लिखे, विनादी वस्तु ग्रहण नहीं करे, हस्त हीनकी सहायता करे, तो निरोगी बलिष्ट हाथ पावे.
११ प्र-पांवकी हीनता कायसे होय? उ--रस्ता छोडके चले, हिंशादी पाप कर्मों में आगे बढे, धर्म कार्य में पीछा हटे, कच्ची मट्टी, पाणी, हरी, कीडीयादीकों पांवसे दाबे, चांफे, अन्य छोटे बडे, जीवोंके पांव तोडे लंगडे पांगले, की हंसी करे' चोरी जारी आदी कू का