________________
ध्यामकल्पतरू. ८० प्र-सुखे अजीव का कायले मिले? उ-भस्मा को स्वस्थान रहे, अहार, वहाही पाहा यदे, उनके पास धर्म वृद्धी करावे. आमिर किन से धर्म ध्यान करे, स्थिर स्वभावीकी कीर्ती कर, सो घर बेठे सुखे अजीवीका कमावे.
८१ प्र-दगाकर अजीवका क्यों चलावे? कपट भावसे दीन जनोंको दान दे. मुनीको भक्ती रहित दान दे, चोरादिक कु कर्मियोंसे आजीवीका चलावे, उनकी परसस्या करे, सत्यवृती निर्वाह करने वालेपे कलंक चडावे. सो महा मुशीबत से दगाकर अजीबी का चलावे.
८२ प्र-सञ्चावटसे आजीवका कोन करे ? उ-सरल भावसे, विनय सहित, धर्मात्मा को अहार देवें, दीन की रक्षा करें, निर्दोष आजीवका न मिलनेसे क्षुद्यादी परिसह सहे परंतु कू वैषार नहीं करे, सो सरलपणे सुखे अजीवीका उपारजन करे.
८३ उ-मनुष्य पशु बजारमें क्योंबिके ? उ--मनुष्य व पशू को बेंचे (मोलदेवें) कंन्या विक्रय पुत्र विक्रय करें या मोल दिलाने की दलाली करें सो मनुष्य हो दास (मुलाम) पणे या पशू हो विके बंधाय.
८४ प्र-सामुदानी कर्म काक्से बन्धे? उ-मनुष्य यापशु