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२०० ध्यानकल्पतरू. ज्ञान नष्ट हो गया तो घोर अन्धारा हो जायगा, इस लिये अब ज्ञान लिखनेकी बहुतही आवश्यकता है. लिखित ज्ञान भव्य जीवोंको आगे बहुतही आधार भत होगा. इत्यादी विचारसें संक्षेपमें सूत्र लिखने सुरू किये. क्यों कि प्रथम आचारांगजीके १८०००० पद थे. अब्बी फक्त मूलके २५०० श्लोकही देखाइ देते हैं. ऐसही द्रष्टी वादांग छोड, इग्यारे अंगादी ७२ सूत्रोंकी लिखाइ संक्षेपमें हुइ, की जिनकी हुन्डी (नामादी) श्री समवायंगजी तथा नंदीजी सूलमें हैं. बाकीका सब ज्ञान उन्हीके साथ गया. - अब इस पंच कालमें तिथंकर केवल गणधर द्वादशांग के पाठी पूर्वधारी वगैरे जो अपार ज्ञानके धारक कोइ नहीं रहे.
* गाथा-सोलस सयच उनासा, कोडि तियसीदि लस्कयंचव
सत्तसहस्साठसया अठासीदिय पदवणा. ३३६ गोमटसार अर्थ-१६३४८३७८८८ इत्ने बरण (अक्षर) एक पदके होते हैं गाथा-अठारस बतीस बादल अडक्कदी विछप्पणं
सचरि अठावीस वाउहाल सोलस सहस्सा ३५५गो०सार अर्ग-आचारांगजीके १८०००, सुयगडांगजीके ३६०००, ठा. जायंगजीके ४२०००, समवायंग़जी १६४०००, भगवतीजीके २२८०००, झाताजीके ५५६०००, उपशकदशांगके ११७००००, अंतगड़ दशांग के २३२८०००, अणुतरोववायजी के ९४४००, प्रश्न व्याकरजीके ९३११६०००, विपाकजीने १८४००० यह ११ भंगको पदकी संख्या जाणमा.