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तृतीयशाखा धर्मध्यान. २३५
मित्रको सरण दाता समजता होय तो भी तेरी भूल हैं निर्मोह बुद्धी देख. जो तूं द्रव्योपारजनमें कुशल सबकी इच्छा प्रमाणें चलने वाला हूवा तो माता पिता कहेंगे. हमारा पुत्र रत्न हैं, भाइ कहेंगा मेरी वाहां है, बेहन कहेगी मेरा वीरा हीरा है, स्त्री कहेंगी मेरे भरतार करतार ( परमेश्वर) है. इत्यादी सर्व कुट म्ब हुकम हाजीर रहे, जी ! जी ! करतें हैं. और जो मूर्ख बेकमावू होय तो; मात पित कहे पेटमें पत्थर पडा होता तो नीम ( मकान के पाये) में देने काम आता, भाइ कहे मेरा वैरी है. बेहन कहे किरका भाइ लाइ (गरीब) स्त्री कहे मौल्या ( मोल लिया गुलाम है) इत्यादी सब सज्जनों की तर्फसें अपमान और दुःख प्रा स होता है, स्वार्थ लुब्ध मातानें ब्रम्हदत्त चकृवृत कों मारने का उपाय किया, कन्क रथ राजा जन्मतें पुत्रों. को मारै, भृत बाहुबली दोनो भाइ आपसमें लडे. को णिक कुमरने अपने पिता श्रेणिक राजाको पिंजरे में कब्ज किया, दुर्योधननें सब कूटम्बका संहार किया. और सूरी कंता राणीनें प्यारे पति प्रदेशी राजाके प्राण हरण कर लिये. ऐसे २ प्राचीन अनेक दाखले है. और वृतमान में बणाव वण रहे हैं. ऐसे मतलबी जन सरण भूत कदापि न होने वाले.