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. ध्यानकल्पतरू. ...
परन्तु अनादी सम्बधंसे एक रुप दिखते है. जैस सुवर्ण से मट्टी को अलग कर निजरुप में प्राप्त करनेके वास्ते सुवर्णकार, मूश, अग्नी, सोहागीक्षार, और द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव, की अनुकुलता, इत्यादी योग्य मि. लनेसे सुवर्ण मट्टीसे अलग हो निजरूषको प्राप्त होता है, तैसेही जीव कर्मका अनादी सन्बन्ध तोडाने-छोडाने चार वस्तुकी आवश्यकता है.. ... १ 'ज्ञान' रूप सुवर्णकार ज्यों सुवर्णकार मट्टी से सुवर्ण निकालने का जाण होता है, और यथा वि धी कर्म कर कार्य साधता है. तैसेही जीव ज्ञान कर कर्मसे अलग होनेकी विधीका जाण होता है. कृतव्य प्रायण होणेकी शक्ती आती है. २ 'दर्शन' श्रधा रूप मूश, क्यों कि श्रधाही सगुणोंके रहने का स्थान हैं, ३ 'चारित्र' संयम रूप 'क्षार' क्योंकि चारित्रही कर्म मेलको फाडनेवाला है और ४ 'तप' रूप अग्नी. क्यों कि तपही कर्म मेल जलाने समर्थ है, यह चारही पदार्थोंका योग मिले उदारिक सरीर रूप द्रव्य आर्य क्षेत्र, चतुर्थ आरादी काल, और भव्यात्म भाव का संयोग मिले यथा विधी साधन करनेसे अनादी कर्म दुहा-मुशी पावक सोहगी, फुक्यातणो उपाय,
रामचरण चर्स मिल्यो, मेल कन्कका जाय .१