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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. २२५ भस्म करदीया, यह इस सरीरकी दिशा क्षिण २ में पलटती हुइ दिखती है. यह सरीर नित्य (सदा) अभीनव रूप धारण कर्ता है, समय २ में पलटता हैं, बालवस्थाकों तरुणपण गिलता है, तरुण पणेंको बृधपणा और बृधपणेंका काल भक्षण कर जाता है, यह मच्छ गलांगल लगी है। परन्तु ऐसा नहीं समजीये की बालका तरुण और तरुणका वृध, जरूर होगा. यह भरोसा नहीं है. कालको बाल युवा बृध का. कुछभी विचार नहीं है. कालरूप घट्टीको तो हमेशा चन्द्र सू ये फिरा रहें है, जैसे घटीके दो पट होते है, तैसे कालरूप घटीका, भूत कालरूप तो स्थिर पट है, और भविष्य कालरूप चल पट है, अयुष्य रूप खोले से. अडके जो रहे हैं, वो बचे हैं, 'खूटा छुटा के आटा हुवा', अपने देखते बहुतेका हो गया, और बाकी रहे उनका भी एक दिन होनेवाला; ऐसी इस सरीर की दिशा देखते जो इस सरीरको नित्य जाण. मोह
.: * उपय-मनुष्य तणो अवतार बर्ष चाली से मीठो. क. डबो होय पञ्चास साठे. क्रोध पइठो. सित्तर सगो. न कोय. अस्सी ये नाही सगाइ. नव्वे नग्गो होय. हसे सर्व लोक लुगाइ..वर्ष आ या जब सेंकडा. तन हुवा सब खोंकरा. . पतिवृता पावे को कहे अब मरे न छूटे डोकरा. १