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२३२ ध्यानकल्पतरू, है, की जो जगत्के सर्व पदार्थका आयुष्य क्षिण २ में क्षय करता है, जैसे अंजली [ हाथके खोबे] में लिया हुना पाणी बुंद २ कर कमी होता हैं, तैसेही सब पदा भोंका आयुष्य घटता है.
औरभी जैसे १. खप्नकी सायबी, २. मेघ पट, लों (बादलो) का समोह, ३. विपत (बिजली) का चमत्कार, ४. इन्द्र धनुष्य, ५. मायवी सायबी, वगैरे अनेक पदार्थ क्षिणिकताके सूचक है. उनको आँखोसे देख. हृदयमें विचार सौंच समज मानू ये मेरे सब्दोध कर्ता गुरूही हैं. और समजा रहे हैं, की हे चैतन्य अव चेत! चेत !! मोह धुन्धी उडा, अज्ञानका पडदा दूर कर, और अंतारिक ज्ञान लक्ष लगाके देखकी कपिल केवली ने फरमाया है "अधुव असासयं मी, संसारंमी दूरक पउरए” अर्थात् यह अध्रुव (अनिश्चल) अशाश्वत और दुःखसे पूर्ण भरा हुवा संसार हैं, इसमें रहे जो ममत्व मुरछा करते हैं, वोही दुःखी होते हैं,
हरीगीत -बहु पुण्य केरा पुंज्य यी शुभदेह मानव नोमल्यों. तो ए अरे भव चक्र नो भोटो नही एके टल्यो. सुख प्राप्त करता मुख टळेछ, नेक एलक्षे रहो, “क्षिण २ निरंत्र भाव मरमें" का अहो राची रहो.
. कवी रायचन्द्र