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२३० ध्यानकल्पतरू. . औरभी अनित्यताके दर्शाने लिये देखीये (१) हमेशा श्यासकों वृक्षोंपे पक्षीयोंका समोह आ जमता है, जिस डालपे आंप बैठे. वहां दूसरे पक्षीको बेठने नहीं देते है, क्यों कि उस वृक्षकों अपना मान लिया है. परन्तु वोही पक्षीयों सूर्यका प्रकाश होते दिशोदिश उड जाते है, तब उस झाडका पत्ताभी उन्हके साथ नहीं जाता हैं. तैसे ही देह वृक्षपे जीव पक्षीयों
चार गतियों में से आबैठे है. कालरूप सूर्योदय होते • सब जायंगे, देह ह्यांइ रह जायगा. ... .. (२) वादीगर (ईन्द्र जालीया) की डुमडुमीका
शब्द सुणतेही चहुदिशासें मनुष्य बृंद उलट आते हैं, 'बाजी समेटी के सब दिशेोदिश भग जाते है. और इकेला बाजीगर दंड भंड ले आपने रस्ते लगता हैं. तैसेही जीव बाजीगरकी, पुन्य सामग्री देखने कुटम्बादी मिले है. पुण्य खुटे सब रस्ते लगेंगे, और जीव इकेला चला जायगा. 3(३) मेल-यात्रा दी में चौदिशा से मनुष्यों का समागम होता हैं बांही समयानंतर, सुन्य अरण्य (जंगल) रह जाता है.
(४) लग्नादी उत्सबके प्रसंगमें, स्वजानादी स मोह जमता है; और उत्सव निवृतते घर धणीही रह