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२२४ ध्यानकल्पतरू. स्वभावसे फरक पडते २ उन पुद्गलोंमे कठिणता प्राप्त होते २ सेडा (नाकका मैल) बोर, अम्बा, रूप बन, अंगोपांग के अंकूर फूट इन्द्रियों क छिद्र पड, बाला दीका आगम हो, संपुर्ण सरीरके अव्यववों को प्राप्त होता है, जन्म समय पून्योदयसे साधाही बाहिर पड, अज्ञान अस्मर्थ अवस्थाके पराधीनता के अनेक कष्ट सह, ज्ञानावस्थामें, विद्याभ्यासमे; तरुणपणा प्राप्त होते विषय पोषणकी समग्रीयों का संयोग मिलाने, तरुणीयों के प्यारे बनने, कुटंबके भरण पोषण करने, वृधावस्था प्राप्त होते, काया नगर की खराबी होने लगी, शिर थर्राराया, कर्ण कम सुने, चक्षुका तेज घटा, घ्राण झरने लगा. दंतावली नष्ठ होनेसे मुख उ. जाड हुवा, जिभ्या लथडाने लगी, स्वर मंद पडा, जठराग्नी मंद होनेसे, पचन शक्ती घटी, जिससे अनेक व्याधीयों उठने लगी, कम्मर झुकी, गोडे थके, पांव धूजने लगे, इत्यादी सरीर की शक्ती हीन निकम्मी होतें. जिनकों प्यारे लगतेथें उनको ही खार (खराब) लगने लगे. और एक दिन सर्वायुष्य क्षय होने से सब सज्जन मिलके उसे ही सरिर कों चितामें जला
+ कित्नेक गर्व में आडे आके कटक निकलते हैं.