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___२२२ ध्यानकल्पतरू. और विनाशपाती हैं. इस लिये यह अनित्य हैं. बहुत से संसारी जीवों को. वस्तुके गुण का ज्ञान बिल कुल न हाने से. और पर्याय का पलटा प्रत्यक्ष दिखने में, पर्यायों परही नित्या नित्य की बुद्दी कर- ममत्व भाव कर. राग द्वेष को प्राप्त होते हैं. उसइ बुद्वी कों स्थिर करने ह्यां स्पष्टता से खुल्ला विचार करते है.
मोह निद्रा ग्रस्त जीवों को जाने, घटिका (घडीयाल) कट २ शब्द कर चेताती हैं. की तुम १ ब. जी. दो बजी. यों क्या कहते हो? जैसे कटने से बस्तु कमी होती है. तैसेही घटि २ (घडि २ घट) कर. सर्व वस्तू का आयुष्य कमी होता है. और सर्वायुष क्षय हुये. वस्तु का नाश हो जाता है. अर्थात् अब्बल के रुप के परमाणुओं बिखर (अलग २ सुक्ष्म रुप से हों) रुपांत्र को प्रात हो, अन्य रुप अन्य स्वभाव कों प्राप्त होते है. यह अवस्था देख, जीवों विभाव को प्राप्त होते है. की, वो मेरा अमुक मरगया! यह मेरा नहीं हैं ! हाय हाय !! यह कैसा हुवा !! तब ज्ञानी चेतातें है की' है चैतन्य ! यह जगत् की दिशा देख चेतो ! जैसे तुमारी गत काल की सब घटिका ओं गइ और तुमारे सरीर व संपती का रुपांत्र किया. रम्या को अरम्य और अरण्य को रम्य बनाया, तैसेही आगे