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१९८ ध्यानकल्पतरू. मेहलपे चढने को पंक्तीये या आलम्बम डोरी आधार भूत होती है. वैसेही धर्म ध्यानमें प्रवृत होने वाले महात्माको चार तरहका आधार होता है. सो कहे है:१ वायणा-सुत्रका पठन, २ पुच्छणा-संदेह निवारन गुरूसे प्रच्छना (पूच्छना) ३ परियट्टना पढे ज्ञानको वारम्बार संभारना. (फेरना) और ४ धम्मकहा-धर्म कथा (व्याख्यान) दे प्रगट करना. .
प्रथम पत्र-“वायणा" १ 'वाचना' गीतार्थ बहु सूत्री, आचार्य, उपा ध्याय, इत्यादी विद्वरोंके पाससे. ज्ञान ग्रहण करना (पढना) या लिखित सूत्र ग्रन्थादी बांचना (पढना) यह ध्यानी के ध्यानका प्रथम आलंबन आधार हैं. ..
अव्वल चतुर्थ (चौथे) आरेमें, प्रबल (तिक्षण) प्रज्ञा (बुद्धि) के सबबसें, शास्त्रादिक लिखने की आवश्यकता बहुतही थोडीथी. वो अपणे गुरुओंके पाससे थोडेही कालमें बहुत ज्ञान कंठाग्रह कर लेतेथें, किनेक तो ऐसी तेज बुद्धि वाले थे की, चउदह पूर्वकी विद्या, जो कदापि लिखे तो १६३८३ हात्थी डूबे इ. ली श्याही लगे, इत्ने ज्ञानको एक मुहूर्त मात्रमें कंठ