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तृतीयशाखा-धर्मध्यान १९७ कथा और १२ द्रष्टी वादांग में सर्व ज्ञान का समवे श किया था. ... यह द्वादशांगी श्रीजिनेश्वर भगवानकी वाणी. अगाध ज्ञान का सागर है. तत्वज्ञान कर प्रतिपूर्ण भरी हुइ है. ज्ञाता को अपूर्व चमत्कार ह्रदयमें उत्पन्न कर. ती है. आत्म श्वरुप बताने वाली, मिथ्या भर्म मिटाने वाली, मोह पिशाच भगाने वाली, मोक्ष पंथ लगाने वाली, अनंत अक्षय अव्या बाध सुख को चखाने वा ली, एक श्री जिनश्वर भगवंत की वाणीही, गुण खा. णी हैं. जिसे पठन,श्रवन,मनन निध्यासन, करनेमें धर्म ध्यानी महात्मा सदा प्रेमातुर रहते हैं. एकेक शह अत्यंत उत्सुकता से ग्रहण कर उसके रेशमें अंतः करण को प्रवेश कर, एकाग्रता से लीनहो. अपूर्व अनोपम आनंद प्राप्त करतें हैं.
तृतीय प्रतिशाखा धमध्यानीके “आलम्बन' सूत्र धम्मरसणं झाणस्स चत्तरी आलंबना पन्नंते तं.
जहा. वायणा. पुच्छणा, परियट्टणा, धम्मकहा. .... अर्थ-धर्म ध्यान ध्याने वाले को चार आलम्बन (आधार) फरमायें है, जैसे बृध मनुष्यको मार्ग क्रम