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तृतीयशाखा-धर्मध्यान
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जरूर भोगवेंगे, यथा द्रष्टांत-अव्वल पक्कान. भोगव.. फिर कांदा (प्याज) भोगवे तो. उसे पहले पक्कानकी डकार आयगी, और फिर कांदेकी. दूसरा प्रत्यक्ष देखते है. एक पालखीमें बेठा और चार उठाके चलते है. पालखी वाला उतर गादीपे लोटता है. और उठाने वाले पांव दाब (चांप) ते है, वो पांचही मनुष्य एक से होके प्रत्यक्ष पुण्य पापके फल भोगवते हैं, और जो कर्म फिर जाय तो उठाने वाले पालखीमें बैठ जाय. और बैठने वाले पालखी उठाने लग जाय, यह प्रतः क्ष पाप पुण्यकी विचित्र रचना परभव के इस भबमें भोगवते इष्टी आते हैं, [४] ऐसेही किलेक ऐसे कर्म, है की, इन भवके शुभ कृत्य के फल आगेके जन्म में भोगवेगे, जले किने वाला ओंको दुःखी देखतें है. तब मन में शंका लाते है की, जो धर्मसे सुख होंता होता तो, यह दुःखी क्यों? परंतु वैम लानेका कुछ कारण नहीं है, प्रत्यक्ष देखीये, अबी कोइ औषध लेते है, वो लेतेही एकदम गुण नहीं कर देती हैं. परन्तु मुदतपे, पथ्य पालन से गुण कर्ता होती है. जहां तक पहलेका विकार क्षय नहीं होगा. वहां तक पहले औषधीका गुण दर्शना मुशकिल है, तैसेही गत अशुभ कर्मका जोर कमी न होवे, वहांतक धर्म करणीका