________________
तृतीयशाखा-धर्मध्यान २११ न कर ऐंसा सम्यक्त्व का विस्तारसे यथा तथ्य रुची कारक स्वरुप बता के तथा अनेक प्रश्नोतर कर- पका करे, की वो किसी का डगाया डगे नहीं. ..
३ “संवेगणी" अर्थात सं-सीधे, वेग-रस्ते च लावे सो संवेगणी कथा. इसके ४ भेद (१) जिन २ वस्तवापे संसारी जीवोंका प्रेम है, उनकी अनित्यता बतावे की देखो! देखते २ वस्तूवोंके स्वभावमें, स्वरुपमें कैसा फरक पडता है. ताजी वस्तु और बासी वस्तुकों देखनेसे मालम होता है. वस्तूका स्वभाव क्षिण भंग्गू र हैं, अर्थात क्षिण २ में पलटता हे. क्यों कि जो गुण और जो स्वाद गरममें था, वो ठन्डी हुये पीछे न रहा; पेसेही इस शरीर को देखो. उत्पन्न हुये पीछे जवानी तक, कैसी सुन्दर तामें वृधी होती है. फिर वृधवस्था में कैसी हीनता होती है, और सरीर नष्ट हो जाता है. ऐसे सर्व जगत्के सर्व पदार्थ जानना. क्षिण २ में नवे २ पुद्गल उत्पन्न होते हैं; और ज्युने विनाश होते है. सब पदार्थों में कुछ एकही दम फरक नहीं पडता है; परन्तु पडता २ ही पड़ता है, और ए. कदम पानीके परोटे जैसे. विनाशको प्राप्त होते हैं. ऐसा पूद्रलोका स्वभाव जाण, ममत्व निवारे. फिर मनुष्य जन्मादी सामुग्रही प्राप्त हुइ है. उसकी दुर्ल