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२०६ ध्यानकल्पतरू. और जो अभ्यास कर निश्चय कर निसंदेह ज्ञान किया है उसे
तृतिय पत्र-“परियट्टणा"
३ 'परियट्टणा' अर्थात् वारंवार फेरता (याद करता) रहे. क्यों कि अब्बी इत्नी तिव्र बुद्धि नहीं है की. जो एक वक्त पढ, पीछा याद नहीं करे, तो विस्मरण (भूल) नहीं होवें, और वारंवार फेरनेमें बहुत फायदा है....... श्री उत्तराध्ययन जी सूत्रके २९ में अध्यायमें भगवंतने फरमाया हैं.
“परियट्टणं या एणं वंजण लद्वि च उप्पाएइ" अर्थात् ज्ञानको वारंवार फेरनेसे अक्षरानुसारणी लब्धी उत्पन्न होती है. जिससे एक अक्षर, व पदके अनुसा रेसे, दूसरे आगे पीछे के अक्षरोंका ज्ञात होता है, अपनी विना पढी ही विद्या में काही अन्यके भूले हुये अक्षरोंकों, आप बता सके, ऐसी शक्ती उपजे.
और जो ज्ञान फेरे, वो ऐसा नहीं फेरे की, जैसे बच्चे 'गुणनी' करते हैं, की पढे है वो कह दे, परंतु उसके मतलबमे आप नहीं समजे, 'तूं चल, मै आया'