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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. १६९ ७५ प्र-पूर्ण अंग कायसे होवे ? दूसरेके अंगोपांग का छेदन होता देख रक्षण करें, अपंगीकी करूणा करे, उसे सुधारने उपचार करे, आजीवीका चलावे. सहाय देवो तो पूर्णांगी (संपूर्ण अंगवाला) होवें..
७६ प्र-नीच जात कायसे पावे? उ-अपणी उच्च जाति कुलका अभीमान करें, उच्च की निंदा करें, नीचका द्वेष करें, नीच कामें करे, सो नीच जाती पावे. ___ ७७ प्र-उंच जात कायसे पावे ? उ-सत्पुरुषोंके गुण की परसंस्था करे, वंदना नमस्कार करे, अपणे दुर्गुण प्रगट करें, चार तीर्थकी भक्ती करें, यह मनुष्य जन्म पाय तो राजादिक कुलमें जन्में और तिर्यंच होय तो राज्यका मानेता हो सुख भोगवे. .
७८ प्र-उंच चातीका दास क्यों बने? उ-उच्च कम कर अभीमान करें, गुरुकी आज्ञाका भंग करें, उंच हो दीनोके शिर आल चडावे, उच्च हो नीच काम करे. सो उंच होनीच (दासके) कर्म करे.
७९ प्र--प्रदेश फिरके आजीका क्यों करें? उ-भि. झूकोंको लालच दे, वारंवार फिराय फिर दान दे. नोकरोंकी नोकरी साय २ दी, धर्म नामसे निकला धन बहुत दिन घरमें रक्खे, काशीदको भटकावे, सो प्रदेश फिर अजीवीका करें.