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ध्यानकल्पतरू.
१८६ प्र - नर्क तियंच गतिमें अकाम निर्जरा कर मनुष्य हुवा वो पहले दुःखी हो पीछे सुख पावे, कूलीन के सिर कलंक आवे. शक्त सजा पावे, फिर इ न्साफ होनेसें निर्दोष ठेहरे छुट जावे. मिले ?
१८७ प्र - मोक्ष कायसे चारित्र और तपकी सम्यक स्फर्शन करनेसे.
इति
उ - ज्ञान दर्शन प्रकारे आराधन पालन
इत्यादी कर्म बन्ध करनेके, और भुक्तनेके, अनेक कारण शास्त्र ग्रन्थमें बतायें हैं. कित्नेक कर्म, इस भवके किये इसही भवमें भोगवते हैं. और किनेक आगे के जन्ममे भोगवते हैं. अनंत ज्ञानी सर्वज्ञ भग वंतने संसारी जीवोंकी कर्म विपाकसे होती हुइ दिशा को अवलोकन करी, परन्तु वाणी द्वारा सम्पूर्ण वर्णन कर सके नहीं, क्यों कि सम्पूर्ण विश्व अनंत जीवों कर भरा हैं. और एकेक जीवके अनंत कर्म वर्गणाके पुद्गल लगे है. और एकेक वर्गणाके वर्णादी पर्यायकी अनंत व्याख्या होती हैं. ऐसा अपरम्पार विपाक वि चय का वर्णन, भाषा द्वारा कदापी न होसके, तथा
+ ९६ के उप के बोल गौतम प्रच्छा और धर्म ज्ञान प्रकाशके अनुासर से कुछ बढा के लिखे हैं.