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सिद्ध
लोककार
सिद्ध
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उंचा लोक
१०१९
५
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२।१
जोतषी
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३
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नर्क ७
ध्यानकल्पतरू
राज लोकाग्र (मोक्षस्थान ) आवे वहाँ एक राजूका चौडा है. नी च उलटा उसपे सुलटा और उसपे एक उलटा यों तीन दीवे रखे, तथा पांव पसार कम्मरकों हाथ लगा मनुष्य खड़ा रहे, इत्यादी संस्थान (आकार) मय लोक हैं. ऐसा कथन भगवति आदी शास्त्रमें लिखा है, इस मध्यलोक लोकके मध्य भागमें एक निसर णी जैसी एक राजू चौडी और सातभी नर्कले मोक्ष तक १४ राजू लम्बी लस नाल हैं. उस के अन्दर त्रस और स्थावर दोनों प्रकारके जीव है. वाकी सर्व लोकमें एक स्थावरही जीव भरे है, त्रस नलके नीचेका विभाग
नांगोद
स्थान
सात राजू जिल्ली (उलटे दींवे जैसी ) जगामें सात नर्कस्थान है, वहां पापकी अधिकता होती है, वो जी व उपजके कृत कर्मके असुभ फल दुःखी हो भृक्कते है. मध्यमें दोनों दीवेकी संधी मिलती है, वहां गोळाकार